ईश्वर की प्रप्ति के लिए ऐसा दृष्टिकोण एवं क्रिया- कलाप अपनाना पड़ता है, जिसे प्रभु समर्पित जीवन कहा जा सके ।। जीवन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आत्मिक प्रगति का मार्ग अपनाना पड़ता और वह यह है कि हम प्रभु से प्रेरणा की याचाना करें और उद्देश्य यही है कि मनुष्य अपने लक्ष्य को, इष्ट को समझें और उसे प्राप्त करने के लिए प्रबल प्रयास करें। उपासना कोई क्रिया कृत्य नहीं है। उसे जादू नहीं समझा जाना चाहिए।
आत्म परिष्कार और आत्म विकास का तत्वदर्शन ही अध्यात्म है। उपासना उसी मार्ग पर जीवन प्रक्रिया को धकेलने वाली एक शास्त्रानुमोदित ओैर अनुभव प्रतिपादित पद्धति है। इतना समझने पर प्रकाश की ओर चल सकना बन पड़ता है। जो ऐसा साहस जुटाते हैं, उन्हें निश्चत रूप से ईश्वर मिलता है। अपने को ईश्वर के हाथ बेच देने वाला व्यक्ति ही ईश्वर को खरीद सकने में समर्थ होता है। ईश्वर के संकेतों पर चलने वाले में ही इतनी सामर्थ्य उत्पन्न होती है कि ईश्वर को अपने संकेतों पर चला सके।
बुद्धिमत्ता इसी में है कि मनुष्य प्रकाश की ओर चले। ज्योति का अबलम्बन ग्रहण करे। ईश्वर की साझेदारी जिस जीवन में बन पड़ेगी, उसमें घटा पड़ने की कोई सम्भावना नहीं है। यह शांति और प्रगति का मार्ग है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
ॐभर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यंभर्गोदेवस्यधीमहिधियोयोन:प्रचोदयात्।।