दु:ख काल्पनिक होते हैं

वैराग्य का अर्थ है- रागों को त्याग देना। राग मनोविकारों को, दुर्भावों और कुसंस्कारों को कहते हैं। अनावश्यक मोह, ममता, ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, शोक, चिंता, तृष्णा, भय, कुढ़न आदि के कारण मनुष्य जीवन में बड़ी अशांति एवं उद्विग्नता रहती है।

तत्त्वदर्शी सुकरात का कथन है कि संसार में जितने दु:ख हैं, उनमें तीन चौथाई काल्पनिक हैं। मनुष्य अपनी कल्पना शक्ति के सहारे उन्हें अपने लिए गढ़कर तैयार करता है और उन्हीं से डर-डर कर खुद-दु:खी होता रहता है। यदि वह चाहे, तो अपनी कल्पनाशक्ति को परिमार्जित करके, अपने दृष्टिकोण को शुद्ध करके, इन काल्पनिक दु:खों में जंजाल से आसानी से छुटकारा पा सकता है। अध्यात्मशास्त्र में इसी बात को सूत्ररूप में इस प्रकार कह दिया है- वैराग्य से दु:खों की निवृत्ति होती है।

हम मनचाहे भोग नहीं भोग सकते। धन की, संतान की, अधिक जीवन की, भोग की एवं मनमानी परिस्थिति प्राप्त होने की तृष्णा किसी भी प्रकार पूरी नहीं हो सकती। एक इच्छा पूरी होने पर दूसरी नई उस इच्छाएँ उठ खड़ी होती हैं। उनका कोई अंत नहीं, कोई सीमा नहीं। इस अतृप्ति से बचने का सीधा-सादा उपाय अपनी इच्छाओं एवं भावनाओं को नियंत्रित करना है। इस नियंत्रण द्वारा, वैराग्य द्वारा ही दु:खों से छुटकारा मिलता है। दु:खों से छुटकारे का, वैराग्य ही एक मात्र उपाय है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति नवम्बर 1946 पृष्ठ 15

ॐभर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यंभर्गोदेवस्यधीमहिधियोयोन:प्रचोदयात्।।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *