मित्रो ! उपासना का मुख्य उद्देश्य है ईश्वर के सान्निध्य को प्राप्त करना। जप,तप,पूजा, अर्चा,ध्यान आदि जो कुछ भी किया जा रहा है, वह सब परमात्मा के लिये ही किया जा रहा है, ऐसा अनुभव किया जाना चाहिए। अनुभव करना चाहिये परमात्मा उसकी पूजा स्वीकार कर रहा है। वह उसकी प्रार्थना अथवा कीर्तन को सुन रहा है। इस प्रकार सच्ची भावना से की गयी उपासना चमत्कार की तरह फलवती होती है। ऐसी जीवंत उपासना व्यक्ति के जीवन पर एक स्थायी प्रभाव डालती है। जो उत्कृष्ट विचारों, निर्विकार स्वभाव तथा सत्कर्मों के रूप में परिलक्षित होता है।
उपासना करता हुआ जो भी व्यक्ति गुण, कर्म,स्वभाव, एवं मन, वचन तथा कर्म से उत्कृष्टï नहीं बना तो यही मानना होगा, उसने उपासना की ही नहीं, केवल उपासना करने का नाटक किया है। उपासना के समय जितनी गहराई के साथ अपनी मानसिक भावना को परमात्मा के साथ संयोजित किया जायगा,वह अनुभव उतनी ही गहराई से जीवन में उतरेगा, वह स्थिर होता जायगा। ऐसी स्थिति आ जाने पर मनुष्य का आत्मोद्धार निश्चित है। उसके गुण,कर्म,स्वभाव परमात्मा जैसे पावन, उत्कृष्ट हो जायेंगे।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
ॐभर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यंभर्गोदेवस्यधीमहिधियोयोन:प्रचोदयात्।।