दो शब्द
आध्यात्मिक जीवन की प्रगति के लिए साधना का अवलम्बन एक अनिवार्य तथ्य है। जो लोग समझते हैं कि मन्दिर में जाकर दर्शन कर आने, एक दो माला जप लेने अथवा कुछ पूजा-पाठ कर लेने से वे आध्यात्मिक शक्ति और शांति प्राप्त कर लेंगे वे बड़े भ्रम में हैं। ऐसा करके भले ही वे अपने मन को समझा लें, पर वास्तविक अभ्यास के लिये इससे कुछ उच्च स्तर की साधना ही काम दें सकती है। वह साधना ऐसी होनी चाहिए, जिसमें परमात्मा के प्रति कुछ आन्तरिक झुकाव हो और हमारे व्यावहारिक जीवन पर भी उसका प्रभाव पड़े। अगर पूजा-पाठ और जप-ध्यान करते हुए भी हम निकृष्ट स्वार्थ-साधन में, सांसारिक भोगों के चक्कर में और अन्य लोगों के कष्टों के प्रति उदासीनता और उपेक्षा की प्रवृत्ति में पड़े रहें, तो समझ लेना चाहिए कि हम पूजा-उपासना-साधना की नकल ही कर रहे हैं, सच्ची साधना और उसके कायाकल्प करने वाले परिणामों से अभी दूर ही हैं।
प्रस्तुत पुस्तक इसी उद्देश्य से लिखी गई कि लोग पुराने ढंग की बाह्य पूजा-पद्धति के घटाक्षेप में संशोधन करे उसके समयानुकूल रूप को अपनावें और अपना बहुत-सा समय तथा शक्ति लम्बे-चौड़े विधि-विधानों में लगाने के बजाय उसका एक बड़ा भाग परमार्थ और परोपकार युक्त जीवन जीने में खर्च करें। यदि पाठक पुस्तक में बतलाये मार्ग दर्शन को अपनाकर अपने जीवन क्रम में उपयुक्त तथ्य का समावेश करेंगे तो उनको मालूम होगा कि सामान्य पूजा-पाठ करने पर भी उनके भीतर उस आध्यात्मिक शान्ति और शक्ति का उदय हो रहा है जो सच्चे धर्म तथा ईश्वरोपासना का अन्तिम लक्ष्य है।
…. क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 सर्वोपयोगी सुलभ साधनाएं
ॐभर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यंभर्गोदेवस्यधीमहिधियोयोन:प्रचोदयात्।।