जीवन में कई अवसरों पर बड़ी विकट परिस्थितियाँ आती हैं, उनका आघात असह्य होने के कारण मनुष्य व्याकुल हो जाता है और अपनी विवशता पर रोता-चिल्लाता है। प्रिय और अप्रिय घटनाएँ तो आती हैं और आती ही रहेंगी।
ऐसे अवसरों पर हमें विवेक से काम लेना चाहिए। ज्ञान के आधार पर ही हम उन अप्रिय घटनाओं के दु:खद परिणाम से बच सकते हैं। ईश्वर की दयालुता पर विश्वास रखना, ऐसे अवसरों पर बहुत ही उपयोगी है। हमारा ज्ञान बहुत ही स्वल्प है इसलिए हम प्रभु की कार्यविधि का रहस्य नहीं जान पाते जिन घटनाओं को हम आज अप्रिय देख-समझ रहे हैं, वे यथार्थ में हमारे कल्याण के लिए होती हैं।
हमें समझ लेना चाहिय कि हम अपने मोटे और अधूरे ज्ञान के आधार पर परिस्थितियों का असली हेतु नहीं जान पाते, तो भी उसमें कुछ-न-कुछ हमारा ति अवश्य छिपा होगा, जिसे हम समझ नहीं पाते। कष्टों के समय हमें ईश्वर की न्यायपरायणता और दयालुता पर अधिकाधिक विश्वास करना चाहिए। इससे हम घबराते नहीं और उस विपत्ति के हटने तक धैर्य धारण किए रहते हैं। संतोष करने का शास्त्रीय उपदेश ऐसे ही समय के लिए है। कर्त्तव्य करने में प्रमाद करना, संतोष नहीं वरन् आई हुई परिस्थिति में विचलित न होना, संतोष है। संतोष के आधार पर कठिन प्रसंगों का आधार पर हल्का हो जाता है।
अखण्ड ज्योति -अप्रैल 1943
ॐभर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यंभर्गोदेवस्यधीमहिधियोयोन:प्रचोदयात्।।