स्वतंत्र बुद्धि की कसौटी पर आप जिस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं उसे साहस के साथ प्रकट कीजिए, दूसरों को सिखाइए। चाहे आपको कितने ही विरोध-अवरोधों का सामना करना पड़े, आपकी बुद्धि जो निर्णय देती है, उसका गला न घोटें। आप देखेंगे कि इससे आपकी बौद्धिक तेजस्विता, विचारों की प्रखरता बढ़ेगी और आपकी बुद्धि अधिक कार्य कुशल और समर्थ बनेगी।
भूलें वे हैं, जो अपराधों की श्रेणी में नहीं आतीं, पर व्यक्ति के विकास में बाधक हैं। चिड़चिड़ापन, ईर्ष्या, आलस्य, प्रमाद, कटुभाषण, अशिष्टता, निन्दा, चुगली, कुसंग, चिन्ता, परेशानी, व्यसन, वासनात्मक कुविचारों एवं दुर्भावनाओं में जो समय नष्ट होता है, उसे स्पष्टतः समय की बर्बादी कहा जायेगा। प्रगति के मार्ग में यह छोटे-छोटे दुर्गुण ही बहुत बड़ी बाधा बनकर प्रस्तुत होते हैं। यह भूलें अपराधों के समान ही हानिकारक हैं।
घिसने और टकराने से शक्ति उत्पन्न होती है। यह वैज्ञानिक नियम है। ईश्वर अपने प्रिय पुत्र मानव को शक्तिवान्, प्रगतिशील, विकासोन्मुख, चतुर, साहसी और पराक्रमी बनाना चाहता है। इसीलिए वह समस्याओं और कठिनाइयों का एक बड़ा अम्बार प्रत्येक मनुष्य के सामने खड़ा किया करता है।
ईश्वर को इस बात की इच्छा नहीं कि आप तिलक लगाते हैं या नहीं, पूजा-पत्री करते हैं या नहीं, भोग-आरती करते हैं या नहीं, क्योंकि उस सर्वशक्तिमान् प्रभु का कुछ भी काम इन सबके बिना रुका हुआ नहीं है। वह इन बातों से प्रसन्न नहीं होता, उसकी प्रसन्नता तब प्रस्फुटित होती है जब अपने पुत्रों को पराक्रमी, पुरुषार्थी, उन्नतिशील, विजयी, महान् वैभव युक्त, विद्वान्, गुणवान्, देखता है और अपनी रचना की सार्थकता अनुभव करता है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
ॐभर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यंभर्गोदेवस्यधीमहिधियोयोन:प्रचोदयात्।।