मनुष्य का व्यक्तित्व

जो व्यक्ति वास्तव में अपने से प्रेम नहीं करते वे ही मन, वचन तथा कर्म से बुरा काम करके अपने लिए पतन का पथ प्रशस्त करते हैं। किन्तु ऐसे व्यक्ति मुँह से यही कहते हैं कि “मैं अपने को प्यार करता हूँ।” इसके विपरीत ऐसा व्यक्ति जो कहता है कि “मैं अपने को प्यार नहीं करता” बुरे कर्मों से बच कर मन, वचन तथा कर्म से शुभ कर्त्तव्यों में संलग्न रहते हैं भोग, विलास, प्रमाद जैसी प्रवृत्तियों से दूर रहते हैं, वे ही वास्तव में अपने आप से प्रेम करने वाले माने जा सकते हैं। इसलिए यह निश्चय रूप से समझ लो कि जो आदमी अपनी आत्मा को प्यार करता है वह सदैव उसे दुराचरण से दूर रखेगा, क्योंकि बुरा काम करने वाला कभी भी आनन्द नहीं पा सकता।

जिस समय मौत आ घेरती है, मनुष्य उसके पंजे में बेबस होकर फँस जाता है तो उस समय वह किस चीज को अपनी कह सकता है? वह कौन सी चीज है जिसे वह अपने साथ ले जा सकता है और जो छाया की तरह कभी उसका साथ नहीं छोड़ती? जो काम वह करता है, चाहे वे भले हों या बुरे, उन्हीं को वह अपने साथ ले जा सकता है, उन्हीं को वह अपना कह सकता है और वे ही छाया की तरह उसके साथ रहते है। इसलिए हर एक मनुष्य को उचित है कि वह अच्छे कार्य करके भविष्य के सुख के लिए एक खजाना इकट्ठा कर ले।

भगवान बुद्ध
अखण्ड ज्योति जुलाई 1963 पृष्ठ 1

ॐभर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यंभर्गोदेवस्यधीमहिधियोयोन:प्रचोदयात्।।

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