पराजय में विजय का बीज छिपा होता है।

यदि सदा प्रयत्न करने पर भी तुम सफल न हो सको तो कोई हानि नहीं। पराजय बुरी वस्तु नहीं है। यदि वह विजय के मार्ग में अग्रसर होते हुए मिली हो। प्रत्येक पराजय विजय की दशा में कुछ आगे बढ़ जाना है। अवसर ध्येय की ओर पहली सीढ़ी है। हमारी प्रत्येक पराजय यह स्पष्ट करती है कि अमुक दिशा में हमारी कमजोरी है, अमुक तत्व में हम पिछड़े हुए हैं या किसी विशिष्ट उपकरण पर हम समुचित ध्यान नहीं दे रहे हैं। पराजय हमारा ध्यान उस ओर आकर्षित करती है, जहाँ हमारी निर्बलता है, जहाँ मनोवृत्ति अनेक ओर बिखरी हुई है, जहाँ विचार ओर क्रिया परस्पर विरुद्ध दिशा में बढ़ रहे हैं, जहाँ। दुःख, क्लेश, शोक, मोह इत्यादि परस्पर विरोधी इच्छाएं हमें चंचल कर एकाग्र नहीं होने देतीं।

किसी न किसी दिशा में प्रत्येक पराजय हमें कुछ सिखा जाती है। मिथ्या कल्पनाओं को दूर कर हमें कुछ न कुछ सबल बना जाती हैं, हमारी विश्रृंखल वृत्तियों को एकाग्रता का रहस्य सिखाती हैं। अनेक महापुरुष केवल इसी कारण सफल हुए क्योंकि उन्हें पराजय की कड़वाहट को चखना पड़ा था। यदि उन्हें यह पराजय न मिलती, तो वे महत्वपूर्ण विजय कदापि प्राप्त न कर सकते। अपनी पराजय से उन्हें ज्ञात हुआ कि उनकी संकल्प और इच्छा शक्तियाँ निर्बल हैं, चित्त स्थिर नहीं है, अन्तःकरण में आत्म शक्ति पर्याप्त से जाग्रत नहीं है इन भूलों को उन्होंने सम्भाला और उन्हें दूर करके विजय के पथ पर अग्रसर हुए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति 1948 दिसम्बर पृष्ठ 1

ॐभर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यंभर्गोदेवस्यधीमहिधियोयोन:प्रचोदयात्।।

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