चिंतन और चरित्र का समन्वय

अपने दोष दूसरों पर थोपने से कुछ काम न चलेगा। हमारी शारीरिक एवं मानसिक दुर्बलताओं के लिए दूसरे उत्तरदायी नहीं वरन् हम स्वयं ही हैं। दूसरे व्यक्तियों,, परिस्थितियों एवं प्रारब्ध भोगों का भी प्रभाव होता है। पर तीन चौथाई जीवन तो हमारे आज के दृष्टिकोण एवं कर्तव्य का ही प्रतिफल होता है। अपने को सुधारने का काम हाथ में लेकर हम अपनी शारीरिक और मानसिक परेशानियों को आसानी से हल कर सकते हैं।

प्रभाव उनका नहीं पड़ता जो बकवास तो बहुत करते हैं पर स्वयं उस ढाँचे में ढलते नहीं। जिन्होंने चिंतन और चरित्र का समन्वय अपने जीवन क्रम में किया है, उनकी सेवा साधना सदा फलती- फूलती रहती है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

ॐभर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यंभर्गोदेवस्यधीमहिधियोयोन:प्रचोदयात्।।

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